या देवी सर्वभूतेषु
शक्ति-रूपेण संस्थिता।
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः॥'
यानी जो देवी समस्त भूतों में यानी के पृथ्वी, अग्नि, जल, वायु, आकाश समस्त भूतों में शक्ति के रूप में विद्यमान है
ऐसी शक्ति जिसके कारण समस्त भूत व सकल पदार्थ गतिमान है उस परम शक्ति को बारंबार नमस्कार है. '
या देवी सर्वभूतेषु मातृ-रूपेण संस्थिता।
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः॥'
अर्थात जिस कण-कण में विद्यमान देवी के कारण सृष्टि की उत्पत्ति होती है
जिसके नियम के कारण सृष्टि में सृजन का कार्य होता है
जिसके कारण फल फूल अन्न जल आदि की प्राप्ति होती है
उस कण कण में विद्यमान सृजन की देवी को बारंबार नमस्कार है.
'या देवी सर्वभूतेषु चेतनेत्यभि-धीयते।
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः॥'
यानी कि कण-कण में विद्यमान जिस चेतन शक्ति के कारण सब कुछ गतिमान है समस्त प्राणियों के प्राण गतिमान है, उस प्राणधार चेतन शक्ति को बारंबार नमस्कार है.
'या देवी सर्वभूतेषू कान्ति रूपेण संस्थिता।
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः'
यानी कण कण में विद्यमान देवी जो कि समस्त प्राणियों में तेज के रूप में सूर्य की किरणों में विद्यमान है,
दिव्यज्योति के रूप में आंखों में विद्यमान है
ऊर्जा रूप में नाभि स्थल के पास अग्नि तत्व के रूप में विद्यमान हैं,
उसे बारंबार नमस्कार है.
'या देवी सर्वभूतेषू जाति रूपेण संस्थिता।
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः॥'
यानि कि कण-कण में विद्यमान वह देवी
विभिन्न जातियों / योनियों के समस्त सजीव प्राणियों / प्राण धारियों के प्राणाें का आधार है
उस देवी को बारंबार नमस्कार है.'
'या देवी सर्वभूतेषु दया-रूपेण संस्थिता।
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः॥'
जिसके मन में दया भाव है
वह दया भाव कण-कण में विद्यमान देवी की ही प्रति छाया है
जहां जहां दया भाव प्रकट होता है
वहां वहां वह देवी दया की प्रतिमूर्ति के रूप में विद्यमान है
उस दयावान देवी को बारंबार नमस्कार है '
या देवी सर्वभूतेषु शांति-रूपेण संस्थिता।
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः॥'
जिस मनुष्य में शांति का भाव जागृत हो गया है और
जिसकी वाणी से
जिसके कर्म से अन्य को भी शांति मिलती है
वह शांति का भाव उस कण कण में विद्यमान देवी का ही प्रतीक है
उस शांति की देवी को बारंबार नमस्कार है.
'या देवी सर्वभूतेषू क्षान्ति रूपेण संस्थिता।
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः॥'
क्षान्ति का अर्थ होता है सहनशीलता, क्षमा
यानि की जो सहनशील है क्षमावान है
तो सहनशीलता और क्षमा भाव दोनों ही उस देवी के प्रतीक हैं
सहनशील वे क्षमावान देवी को बारंबार नमस्कार है.
या देवी सर्वभूतेषु बुद्धि-रूपेण संस्थिता।
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः॥'
कण कण में विद्यमान वही देवी सभी प्राणियों में बुद्धि के रूप में विद्यमान है
जिसके मन में दया का भाव है, शमा का भाव है, शांति का भाव है सहनशीलता का गुण विद्यमान है
ऐसी सुबुद्धि उस देवी का प्रतीक है
ऐसी सुबुद्धि वाली देवी को बारंबार नमस्कार है।
'या देवी सर्वभूतेषु विद्या-रूपेण संस्थिता।
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः॥'
ज्ञान भी उस कण कण में विद्यमान देवी का ही प्रसाद है।
जिसकी वाणी और लेखनी से सत्य ज्ञान प्रसारित होता है,
वह सत्य ज्ञान उस देवी का ही प्रतीक है
विद्यावान ज्ञान की देवी को बारंबार नमस्कार है.
'या देवी सर्वभूतेषु श्रद्धा-रूपेण संस्थिता।
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः॥
श्रद्धा का अर्थ है सत्य को धारण करना
जिन प्राणियों में सात्विकता की झलक दिखाई देती है
वह सात्विकता उस कण-कण में विद्यमान देवी की ही प्रतीक है
उस श्रद्धा, आदर, सम्मान के योग्य देवी को बारंबार नमस्कार है।
'या देवी सर्वभूतेषु भक्ति-रूपेण संस्थिता।
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः॥'
कण-कण में विद्यमान वह देवी
उसकी सृजन शक्ति
उसकी दया
उसकी क्षमा
उसकी शांति
उसकी विद्या/ज्ञान
उसकी बुद्धि के कारण
वह शक्ति भक्ति के योग्य है ,
उस शक्ति को बारंबार नमस्कार है.
'या देवी सर्वभूतेषु लक्ष्मी-रूपेण संस्थिता।
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः॥'
कण कण में विद्यमान उस देवी के कारण ही धन-सम्पदा इस संसार में विद्यमान है।
उस धन-सम्पत्ति के स्रोत रूपी देवी को बारंबार नमस्कार है.
'या देवी सर्वभूतेषु तृष्णा-रूपेण संस्थिता।
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः॥
अर्थात कण कण में विद्यमान वह देवी ही केवल कामना के योग्य है, वह देवी ही केवल तृष्णा के योग्य है
उसके अतिरिक्त सांसारिक पदार्थों की तृष्णा बंधन का कारण है।
उस तृष्णा योग्य देवी को बारंबार नमस्कार है. '
या देवी सर्वभूतेषु क्षुधा-रूपेण संस्थिता।
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः॥'
अर्थात मनुष्य जब तक जीवित रहता है, जन्म से लेकर म़त्यु तक उसकी क्षुधा/भूख नहीं मिटती
लेकिन जो उस देवी की अनुभूति कर लेता है उसकी क्षुधा सदा-सदा के लिये शांत हो जाती है।
उस तृप्ति दायिनी देवी को बारंबार नमस्कार है.
'या देवी सर्वभूतेषु तुष्टि-रूपेण संस्थिता।
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः॥'
जिसके मन में संतोष का भाव है, उनका यह संतोष का भाव भी उस कण कण में विद्यमान देवी का प्रतीक है।
संतोष की उस देवी को बारंबार नमस्कार है. '
या देवी सर्वभूतेषु निद्रा-रूपेण संस्थिता।
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः॥'
जैसे कि निद्रा के उपरांत एक नयी उर्जा की प्राप्ति होती है। तो उस देवी की रचना के कारण निद्रा के द्वारा हमारा मन भी शांत होता है और हमें एक नयी उर्जा की भी प्राप्ति होती है।
उस कण कण में विद्यमान शक्ति को उसकी अदभूत रचना के लिये बारंबार नमस्कार है.
'सर्वमंगल मांगल्ये शिवे सर्वार्थ साधिके।
शरण्ये त्र्यंबके गौरी नारायणि नमोस्तुते॥'
जो सबका मंगल करने वाली है, मंगला है, अपने भक्तों/साधकों का कल्याणकरने वाली हैा '
उसकी शरण ही ग्रहणीय है, वही तीनों लोकों की स्वामिनी है, वही कण कण में विद्यमान होने के कारण हर एक नर-नारी में भी विद्यमान है, वह देवी पवित्र है, ध्वल है, उज्जवल है, वही सब पुरुषार्थो को (धर्म, अर्थ, काम, मोक्ष को) सिद्ध करने वाली है।
उस कण कण में विद्यमान देवी को बांरबार नमस्कार है।
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